डेस्क: अमेरिका में इस समय राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कैंपेनिंग ज़ोर-शोर से जारी है। हाल ही में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप (Donald Tump) और डेमोक्रेकिट पार्टी (Democratic Party) के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस (Kamala Harris) के बीच शानदार डिबेट हुई थी, जिसमें कई बिंदुओं को लेकर ऐसा माना जा रहा था कि हैरिस ने ट्रंप बढ़त बनाई। अब तक ट्रंप राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) और कमला हैरिस के साथ बहस कर चुके हैं। लेकिन इन तमाम राजनीतिक और चुनावी गतिविधियों के बीच एक बार फिर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर हमला हो गया है। मात्र तीन महीने के भीतर ही अमेरिका जैसे में देश में किसी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर दो बार हमला हो जाना कोई छोटी बात नहीं है।
दोबारा बड़ी चूक कैसे?
ट्रंप पर दूसरा हमला फ्लोरिडा (Florida) में उस वक्त हुआ जब वो अपने घर के बाहर गोल्फ खेल रहे थे, तभी लगभग 300 मीटर की दूरी पर कोर्स के किनारे झाड़ियों के बीच से किसी ने गोली चलाई। हमलावर ने जैसे ही गोली चलाई सुरक्षाकर्मियों ने भी जवाबी हमला कर बंदूकधारी को गिरफ्तार कर लिया।
इससे पहले उनपर पेनसिल्वेनिया (Pennsylvania) में 13 जुलाई को एक चुनावी रैली के दौरान पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को निशाना बनाते हुए एक बंदूकधारी ने गोलीबारी की थी। इस हमले में एक गोली ट्रंप के दाहिने कान को छूकर निकल गई थी, जबकि रैली में शामिल एक व्यक्ति मारा गया था और दो अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। जुलाई से सितंबर के बीच ट्रंप पर हुए इन दो हमलों ने अमेरिका की सुरक्षा एंजेसियों पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
‘सीक्रेट-सर्विस’ बार-बार फेल?
अमेरिका के नियमों के मुताबिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को भी वही सुरक्षा दी जाती है जो राष्ट्रपति के पास होती है। क्योंकि ट्रंप पर पिछले हमले के बाद इस पर खूब चर्चा हो चुकी है। वैसे भी पूर्व राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें ये सुरक्षा पहले से ही मिली हुई थी। सीक्रेट सर्विस (secret service) नाम की एजेंसी वर्तमान और पूर्व राष्ट्पति, उपराष्ट्रपति के साथ इन पदों के महत्वपूर्ण उम्मीदवारों की भी हिफ़ाज़त करती है।
भारत में शांतिपूर्ण रहा था लोकसभा चुनाव
इसी कड़ी में बार-बार भारत जैसे देशों को लेकर सुरक्षा एडवाइज़री जारी करने वाले अमेरिका की बात करें तो मौज़ूदा हालात में भारत अमेरिका से ज़्यादा सुरक्षित नज़र आता है। कुछ महीनों पहले भारत में हुए लोकसभा चुनाव से इसकी तुलना करें तो कांग्रेस और बीजेपी सहित कई पार्टियों के स्टार प्रचारकों ने देश के कोने-कोने में जाकर जनसभाएं कीं लेकिन शायद ही इस तरह की हमले की घटना सुनने में आई।
सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र वाले देशों की चुनौतियां
अमेरिका और भारत दोनों ही अपने-अपने तरीके से सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका में लगातार बढ़ते गन कल्चर और ट्रंप पर हुए हमले ने कहीं न कहीं ये ज़रूर ज़ाहिर कर दिया है कि मौजूदा स्थिति में अमेरिका जैसे देश में भी लोग और हाई प्रोफ़ाइल लोग खुद को पूरी तरह सुरक्षित नहीं मान सकते हैं।
भारत बनाम अमेरिका: गन लाइसेंसिंग नियमों की तुलना
भारत
भारत में गन लाइसेंस (Gun License) प्राप्त करने के नियम सख्त हैं। लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले को सुरक्षा की आवश्यकता साबित करनी होती है और आयु 21 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए। इसके अलावा, पुलिस और सामाजिक स्थिति की गहरी जांच होती है और हथियार चलाने की ट्रेनिंग अनिवार्य है। लाइसेंस की समय-समय पर समीक्षा और नवीनीकरण की प्रक्रिया भी होती है, जो सुनिश्चित करती है कि केवल जिम्मेदार व्यक्ति ही हथियार रख सकें।
अमेरिका
वहीं अमेरिका में गन लाइसेंसिंग के नियम भारत की तुलना में काफी लचीले और सरल हैं। वहां बंदूकें खरीदने के लिए आमतौर पर कोई कठोर राष्ट्रीय स्तर पर नियम नहीं होते; प्रत्येक राज्य के अपने अलग-अलग नियम होते हैं। अधिकांश राज्यों में, बंदूक खरीदने के लिए केवल पृष्ठभूमि जांच की जाती है और कई राज्यों में, बिना किसी विशेष लाइसेंस के भी बंदूकें खरीदी जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, हथियार रखने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण या अनिवार्य नवीनीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार, अमेरिका में गन लाइसेंसिंग के नियम भारत की तुलना में आसान हैं।
अमेरिका में मास मर्डर, चिंता का सबब
पिछले एक साल में, अमेरिका में गन का इस्तेमाल करके किए गए मास मर्डर (Mass Murder) की घटनाएं बढ़ी हैं। 2023 में, Gun Violence Archive के अनुसार, कुल 600 से अधिक सामूहिक गोलीबारी की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें कई लोगों की मौतें हुईं। इन घटनाओं ने सार्वजनिक सुरक्षा और बंदूक नियंत्रण कानूनों पर नए सिरे से बहस को जन्म दिया है। अमेरिका में मास मर्डर के आंकड़े लगातार चिंता का विषय बने हुए हैं।
भारत में क्या है स्थित?
भारत में सामूहिक हत्याएं या मास मर्डर की घटनाएं आमतौर पर देखने को नहीं मिलती हैं। भारत में अक्सर आत्महत्या और परिवारिक हिंसा के मामले सामने आते हैं, जो कभी-कभी सामूहिक मौतों का कारण बन सकते हैं, हालांकि ये मास मर्डर की परिभाषा में नहीं आते।
दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता?
अमेरिका और भारत की सुरक्षा नीतियों और स्थितियों में विभिन्नताएं हैं। जबकि अमेरिका में गन की आसान उपलब्धता और उच्च अपराध दर सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाती है, भारत की सख्त लाइसेंसिंग नीतियां, सक्रिय सुरक्षा बल, और सामाजिक एकता सुरक्षा को मजबूत बनाने में सहायक होती हैं।
हालांकि किसी भी देश में पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करना संभव नहीं है, लेकिन हालिया तुलनात्मक घटनाओं को देखें तो भारत में ना ही किसी बड़े राजनेता पर हमला हुआ है और ना ही किसी तरह की मास मर्डरिंग। ऐसे में हम कह सकते हैं कि अमेरिका जैसे ‘पहली दुनिया के देशों’ को भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। इन देशों को समझना चाहिए कि भारत में चीजें तेज़ी से बदल रही हैं और हर मामूली घटना पर बड़ी एडवाइज़री जारी करने की ज़रूरत नहीं है। भारत की बढ़ती ताकत और विकास की दिशा को देखते हुए, बाहरी दृष्टिकोण में भी बदलाव की आवश्यकता है।