ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी में सर्वाधिक संसदीय सीटें जीतने वाले सपाई खेमे का उत्साह इन दिनों चरम पर है। पार्टी अब आगामी उपचुनाव के बाबत रणनीति बनाने में जुटने जा रही है, तो वहीं, हालिया दौर में पार्टी के खिलाफ बगावत का रुख अख्तियार करने वाले नेताओं व विधायकों को लेकर भी सपा कड़ा रुख अपनाने की तैयारी में है। हालांकि पार्टी से बागी हुए विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द करा पाना आसान नहीं है।
सात विधायकों को लेकर सपा सुप्रीमो की भृकुटि टेढ़ी हो चुकी हैं
यूपी की 80 में से 37 सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अब कड़े तेवर के साथ आगे की सियासी डगर पर चलने जा रहे हैं। अब सपा मुखिया की निगाहों में वो बागी विधायक चढ़ गए हैं जिन्होंने बीते दिनों राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के खिलाफ बगावत करते हुए बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इन बागी सपा विधायकों में जो सात चेहरे हैं वे हैं, ऊंचाहार से मनोज पांडेय, गोसाईगंज से अभय सिंह, गौरीगंज से राकेश सिंह, बदायूं से आशुतोष मौर्य, इलाहाबाद पश्चिम से पूजा पाल, अंबेडकरनगर से विधायक राकेश पांडेय और कालपी से विधायक विनोद चतुर्वेदी।
विधानसभा अध्यक्ष के सामने याचिका पेश करने की तैयारी
दरअसल, समाजवादी पार्टी के बागी विधायकों ने पार्टी के निर्देशों का पालन न करके बीजेपी के आठवें प्रत्याशी संजय सेठ के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। अब इसी मुद्दे को लेकर दलबदल विरोधी कानून के तहत जल्द ही बागी हो चुके सपा विधायकों के खिलाफ याचिका पेश की जाने वाली है। समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इन सभी विधायकों द्वारा मीडिया व सोशल प्लेटफार्म पर दिए गए बयानों के ऑडियो-वीडियो सबूत जुटा लिए गए हैँ। जिन्हें याचिका से जुड़े सबूत के तौर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को सौंपा जाएगा।
बागी विधायक पल्लवी पटेल को लेकर समीकरण खंगाले जा रहे हैं
सात बागी विधायकों के खिलाफ जहां विधिक कार्यवाही तय है वहीं, सिराथू से सपा विधायक पल्लवी पटेल को लेकर अभी सपा आलाकमान समीकरणों को टटोल रहा है। साल 2022 में कौशांबी की सिराथू सीट से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को मात देने वाली पल्लवी पटेल ने चुनाव के दौरान मनमाफिक सीट न दिए जाने से नाराज होकर एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठजोड़ कर लिया था। हालांकि पल्लवी पटेल का ये प्रयोग बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ उनका गठबंधन एक भी सीट हासिल नहीं कर सका। भले ही पल्लवी पटेल ने बगावत करके समाजवादी पार्टी की नाराजगी मोल ली हो पर ओबीसी वर्ग में बढ़े हुए समर्थन के बाबत सपाई खेमा सतर्क है। इसी वजह से पल्लवी पटेल को लेकर जल्दबाजी के मूड में नहीं है।
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक सदस्यता खत्म करा पाना आसान नहीं
गौरतलब है कि संविधान के मुताबिक, राज्यसभा चुनावों में सियासी दल व्हिप जारी तो कर सकती हैं पर इसे मानना या खिलाफ जाना पूरी तरह से विधायिका के सदस्यों पर निर्भर करता है। कोई भी दल क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक को पार्टी से जरूर बेदखल कर सकता है। पर राज्यसभा चुनावों में पार्टी लाइन के खिलाफ वोटिंग करने पर दल बदल कानून भी लागू नहीं होता है। जब तक कोई विधायक अपनी संबंधित पार्टी से इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी में शामिल नहीं होता है तब तक वह दल बदल कानून के दायरे से बाहर ही रहता है। बहरहाल, सपा द्वारा बागी विधायकों के खिलाफ दी गई याचिका को लेकर विधानसभा अध्यक्ष का रुख ही महत्वपूर्ण होगा।