Sunday 24th of November 2024

UP: कभी बंधन जुड़ा लिया कभी दामन छुड़ा लिया, सपा-कांग्रेस के गठजोड़ की दास्तां !

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  September 30th 2024 11:58 AM  |  Updated: September 30th 2024 11:58 AM

UP: कभी बंधन जुड़ा लिया कभी दामन छुड़ा लिया, सपा-कांग्रेस के गठजोड़ की दास्तां !

ब्यूरो: पहले मध्य प्रदेश फिर हरियाणा और जम्मू कश्मीर में रिश्तों की डोर पुख्ता न हो सकी तो अब उत्तर प्रदेश में भी गठबंधन डांवाडोल हालत में नजर आ रहा है। हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के चुनावी गठबंधन की। दरअसल, यूपी की दस विधानसभा सीटों.. करहल, मिल्कीपुर, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, फूलपुर, मझवां, कटेहरी, खैर और मीरापुर पर उपचुनाव होना है। इन पर फिलहाल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन के आसार कमजोर होते नजर आ रहे हैं।

 कांग्रेस 50-50 के फॉर्मूले के तहत चुनावी गेम प्लान को आगे बढ़ा रही है

 यूपी में कांग्रेस की निगाहें भी साल 2027 के विधानसभा चुनाव पर टिकी हैं। इससे पहले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव भी पार्टी अहम मान कर चल रही है। गठबंधन में बराबर के पार्टनर बनने की मंशा से कांग्रेस की ओर से 50-50 फार्मूला तैयार हुआ है। यानी दस में से पांच विधानसभा सीटों पर बहैसियत पार्टनर बनकर चुनाव लड़ने की योजना है। ये पांच सीटें हैं फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां और मीरापुर सीट। ये वे सीटें हैं जिन पर साल 2022 में एनडीए  को जीत दर्ज हुई थी सपा यहां पिछड़ गई थी। कांग्रेस रणनीतिकार मानते हैं कि ऐसा होने पर साल 2027 के विधानसभा चुनाव में भी बराबरी का दावा हो सकेगा।

 गठबंधन न होने की स्थिति का आकलन करके कांग्रेस अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है

 अभी तक सपा की ओर से गठबंधन को लेकर न तो कोई बातचीत हुई है न ही अखिलेश की पार्टी ने इस दिशा में कोई सकारात्मक संदेश दिया है। ऐसे में अब कांग्रेस सभी दस सीटों पर चुनावी लड़ने की तैयारी में जुट गई है। इन सभी सीटों पर वार रूम प्रभारी व पर्यवेक्षक नियुक्त किये जा चुके हैं। बाकायदा कार्यकर्ता सम्मेलन व जनसभाओं की रूपरेखा भी तय की जा चुकी है। जल्द ही इसके बाबत शिड्यूल जारी कर दिया जाएगा। कांग्रेस ने अपने दोनों विधायक और 6 सांसदों को मैदान में उतार दिया है. राष्ट्रीय टीम भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है। कांग्रेस भविष्य के विधानसभा चुनाव का रिहर्सल इस उपचुनाव में करना चाहती है।

 सपा ज्यादा से ज्यादा तीन सीटें ही देने का मन बनाए हुए है

 सपा के सूत्रों की माने तो उनकी पार्टी में इस बात को लेकर मोटे तौर पर सहमति है कि आठ सीटों पर सपा और दो पर कांग्रेस चुनाव लड़े। मीरापुर और फूलपुर सीट कांग्रेस को देने पर सहमति हो सकती है।  पार्टी का एक खेमा ये भी मानता है कि कांग्रेस को तीन सीटें भी दी जा सकती हैं क्योंकि अगर इन पर कांग्रेस पिछड़ती है तब भविष्य के लिए उसकी ‘बार्गेनिंग कैपेसिटी’ में कमी आएगी। वैसे अलग-अलग चुनाव लड़ने को लेकर भी मंथन किया जा रहा है। हालांकि अभी भी सपा का बड़ा हिस्सा गठबंधन की मजबूती को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं पर अन्य राज्यों में कांग्रेस के अड़ियल रवैये को लेकर असहज भाव से गुजर रहे हैँ। जरा अन्य राज्यों में कांग्रेस संग सपा के रिश्तों पर गौर कर लेते हैं।

 मध्यप्रदेश में कांग्रेस संग रिश्तों का सफर तय ही नहीं हो सका

 मध्यप्रदेश में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की बाट जोहती रह गई सपा। तब पार्टी ने 69 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हालांकि किसी को भी जीत नहीं मिल सकी। अकेले चुनाव लड़ने पर पार्टी का वोट शेयर 0.46 फीसदी रहा जो नोटा के 0.98 फीसदी से भी पीछे रहा। जबकि अखिलेश ने छह दिनों तक ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार किया, दो दर्जन रैलियां की। टीकमगढ़ की रैली में तो अखिलेश यादव ने कांग्रेस को लेकर भड़ास निकाल दी,  जमकर निशाना साधते हुए कांग्रेस से सावधान रहने की अपील तक की थी। कांग्रेसी दिग्गज कमलनाथ द्वारा अखिलेश यादव को लेकर की गई टिप्पणी के बाद उपजी तल्खी को दूर करने के लिए लोकसभा चुनाव में खजुराहो की सीट गठबंधन के तहत सपा को दी गई। अखिलेश यादव ने पहले डॉ मनोज यादव को प्रत्याशी बनाया लेकिन फिर ऐन मौके पर टिकट बदलकर मीरा यादव को मैदान में उतार दिया। पर तकनीकी खामियों के चलते मीरा यादव का नामांकन ही रद्द हो गया। इससे गठजोड़ का मुद्दा ही अधर में लटक गया। 

 हरियाणा में कांग्रेसी पंजे के साथ के बजाए मायूसी मिली समाजवादी पार्टी को

 हरियाणा की मुस्लिम और यादव बहुल दर्जन भर सीटों पर समीकरणों को अनुकूल मानकर समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहती थी। पर बात बनते न देखकर महज तीन सीटों पर सहमति बनाने की कोशिश की। हरियाणा में सपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह भाटी, पूर्व एमएलसी संजय लाठर और राव विजेंदर की कमेटी ने पलवल की हथीन, दादरी और गुड़गांव की सोहना विधानसभा सीटों के नाम गठबंधन के तहत देने को सुझाए थे। पर कांग्रेस ने जब प्रत्याशियों की फेहरिस्त जारी की तो सपा के लिए कोई भी सीट नहीं छोड़ी। हालांकि अखिलेश ने गठबंधन धर्म निभाने के लिए त्याग की बात कहकर अपनी नाखुशी छिपाने की कोशिश की।

महाराष्ट्र में अकेले सक्रियता बढ़ाई तो कश्मीर में कांग्रेस से मुकाबले पर ही उतर आई सपा

 महाराष्ट्र में भी समाजवादी पार्टी कांग्रेस साथ सीट शेयरिंग चाहती है। पर यहां भी कांग्रेस से हरी झंडी न मिलने पर पार्टी एकला चलो की राह पर आकर तैयारियों में जुट गई है। सपा की महाराष्ट्र यूनिट ने दर्जन भर सीटों पर प्रत्याशी तय कर दिए हैं। यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, विधायक इंद्रजीत सरोज, तूफानी सरोज और लकी यादव को महाराष्ट्र चुनाव का प्रभारी बनाकर चुनावी तैयारियों में इजाफा कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस संग गठबंधन की कोशिश परवान न चढ़ सकी तो 20 सीटों पर सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए। यहां अब कांग्रेस और सपा आमने सामने आ चुके हैं।

 कांग्रेस और सपा के रिश्तो का ये है लेखा जोखा

 तीसरे मोर्चे के मजबूत पैरोकार रहे सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव कभी कांग्रेस से सहज नहीं रहे। हालांकि कांग्रेस और सपा एक दूसरे के पारंपरिक गढ़ों में प्रत्याशी उतारने से गुरेज करते रहे थे लेकिन दोनों दलों मे औपचारिक तौर से समझौता हुआ 2017 में। तब दो लड़कों यानी अखिलेश-राहुल की जोड़ी साथ आई। कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिनमें से सात पर उसे जीत हासिल हुई थी। 311 सीटों पर लड़ी सपा ने 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि समझौते के बावजूद 22 सीटें ऐसी थीं जिन पर सपा और कांग्रेस ने आमने-सामने मुकाबला किया था। तब कांग्रेस के साथ गठबंधन चुनाव के बाद खत्म हुआ तो सपा ने दूसरे दलों की ओर फोकस किया। साल 2024 में सपा ने इंडी गठबंधन के तहत कांग्रेस से फिर नाता जोड़ा। इस बार चौंकाने वाली कामयाबी हासिल की। इस गठजोड़ को यूपी में 43 सीटों पर जीत मिली।

 सपा-कांग्रेस गठजोड़ के तर्क वितर्क के पहलू और सियासी विश्लेषकों की राय

 कांग्रेस के 50-50 फॉर्मूले से सपाई रणनीतिकार सहमत नहीं हैं। एक बड़ा धड़ा इसे अतार्किक मानता है। नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि अगर कांग्रेस की इस दलील को मान लिया जाए तब तो तीन साल बाद होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस 293 सीटें मांगेगी क्योंकि इन सीटों पर सपा 2022 मे हार गई थी। ये नेता ये भी कहते हैं कि कांग्रेस एमपी और हरियाणा में सपा का जनाधार न होने की बात कहकर सीट शेयरिंग से कतरा जाती है तो यही तर्क यूपी में लागू होने पर कांग्रेस का क्या रुख होगा क्योंकि यहां तो कांग्रेस का जनाधार ही नहीं है। हालांकि सपाई खेमे के ज्यादातर लोग मानते हैं कि राहुल और अखिलेश यादव साथ बैठेंगे तो गठबंधन के पेच सुलझ जाएंगे। सियासी विश्लेषक मानते हैं कि अपनी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने के ख्वाहिशमंद अखिलेश यादव जानते हैं कि दूसरे सूबों में बिना कांग्रेस के साथ के बात नहीं बनने वाली। इसलिए वे कई राज्यों मे ठुकराए जाने के बाद भी कांग्रेस को लेकर तल्खी से बचते हैं और महाभारत के कर्ण का उदाहरण देकर त्याग करने की बात कहते हैं। क्योंकि उनकी निगाहें भविष्य की संभावनाओं पर टिकी हुई हैं।

PTC NETWORK
© 2024 PTC News Haryana. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network