ब्यूरो: दलित वोटरों की लामबंदी, पासी वोटरों में पैठ बनाने की मशक्कत, जातीय समीकरणों का संतुलन, सियासी कद में इजाफे की ख्वाहिश, वर्चस्व कायम करने की कवायद ये तमाम शब्द दरअसल यूपी में आमद दर्ज कर रहे बिहार के युवा नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पर सटीक बैठती हैं। जो तमाम मुद्दों को लेकर एनडीए की धारा के विपरीत जाने में भी संकोच नहीं करते हैं तो अब यूपी में होने वाले उपचुनाव में भी अपनी दस्तक दे रहे हैं।
यूपी में अपनी पैठ बनाने के लिए मौका मुहैया करा रहे हैं उपचुनाव
गौरतलब है कि यूपी में दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखें भले ही अभी तय न हुई हों पर इन्हें लेकर सियासी दलों में हलचल तेज हो चुकी है। एक तरफ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच इन सीटों पर तालमेल को लेकर बात बनते नहीं दिख रही है तो दूसरी तरफ एनडीए खेमे के घटक दल भी इस उपचुनाव में भागीदारी को लेकर सक्रिय हैं। इसी कड़ी में बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की ओर से भी अपना दांव चला गया है। इस कवायद को दलित वोटरों खासतौर से पासी बिरादरी को एनडीए के पक्ष में लामबंद करने की मुहिम के तौर पर भी देखा जा रहा है।
यूपी के कौशांबी में विपक्षी दलों पर निशाना साधा चिराग पासवान ने
गुरुवार को केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने यूपी के कौशांबी के मूरतगंज में आयोजित ‘वंचित समाज सम्मेलन’ में शिरकत करके नई सियासी लकीर खींची। वीरांगना ऊदा देवी, राजा सुहेलदेव पासी, महाराजा बिजली पासी और वीर शिरोमणि लाखन पासी जैसे योद्धाओं का जिक्र करते हुए कहा कि अपने पिता स्व रामविलास पासवान के समरसता-समानता के सपने को पूरा करेंगे। कांग्रेस, सपा और बीएसपी पर निशाना साधते हुए कहा कि इन्होंने दलितों को वोटबैंक की तरह ही इस्तेमाल किया। यूपी में पासी-पासवान एवं दलित समाज के एक गठजोड़ को तैयार करने की बात कहते हुए कहा कि उनकी पार्टी सूबे के 103 विधानसभा क्षेत्रों में पासी-पासवान समाज के हक की लड़ाई मजबूती से लड़ेगी।
कौशांबी में पिछले साल भी चिराग पासवान ने आमद दर्ज की थी
प्रयागराज से सटे कौशांबी जिले में तकरीबन 18 लाख वोटरों में दलितों की तादाद छह लाख के करीब है। इसमें भी पासी समाज की तादाद सर्वाधिक साढ़े तीन लाख के आसपास है। पिछले साल यहां संदीपन घाट कोतवाली के मोहिउद्दीनपुर गौस में तिहरा हत्याकांड हुआ था। जिसमें पासी बिरादरी के तीन लोगों की हत्या हो गई थी। तब यहां सभी दलों में पासी जाति से जुड़े नेताओं को भेजने की होड़ सी मच गई थी। बीजेपी नेताओं के अलावा लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने यहां पहुंचकर पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया था। मोदी 3.0 सरकार में मंत्री बनने के बाद चिराग पासवान गुरुवार को पहली बार यूपी पहुंचे। उनकी पार्टी का दावा है कि कौशांबी के बाद जल्द दूसरे जिलों में भी कार्यक्रम करेंगे।
पासी बिरादरी के चुनावी प्रभुत्व को आंक कर ही चिराग यूपी में हैं सक्रिय
यूपी में दलित वोटरों में जाटव बिरादरी के बाद सर्वाधिक आबादी पासी जाति की है। पूरे राज्य की आबादी में इनकी तादाद तीन फीसदी है जबकि दलित समुदाय में इनकी हिस्सेदारी 16 फीसदी है। यहां के अवध क्षेत्र में पासी वोटरों की तादाद चुनावी नजरिए से निर्णायक भूमिका अदा करती रही है। सूबे की 403 सीटों में से सौ से ज्यादा सीटों पर इस बिरादरी का प्रभाव है। जिनमें लखनऊ के मोहनलालगंज, सीतापुर, रायबरेली, बाराबंकी, अमेठी, कौशांबी, प्रतापगढ़, फतेहपुर, उन्नाव, हरदोई, बस्ती और गोंडा में तो पासी वोटर निर्णायक तादाद में हैं। सूबे में इस बार आठ सांसद पासी बिरादरी के हैं। अयोध्या सीट से चुनाव जीते सपा के अवधेश प्रसाद भी इसी जाति से ताल्लुक रखते हैं। चिराग पासवान की निगाहें भी यूपी में इसी बिरादरी के वोटरों को लामबंद करने की ओर लगी हुई हैं। कौशांबी के समीकरण इसी नजरिए से उन्हे मुफीद नजर आ रहे हैं।
वैसे चिराग के तेवरों ने कई मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार को कर रखा है असहज
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति के कोटे के वर्गीकरण के बाबत आए फैसले का विरोध करने वाले नेताओं में चिराग पासवान मुखर थे। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर विपक्ष दलों के विरोध के साथ सुर में सुर मिलाते हुए चिराग पासवान ने कहा था कि इस बिल को जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी) में भेजा जाए। इससे पूर्व केंद्रीय सचिवालय में लेटरल एंट्री में सामान्य वर्गों की नियुक्ति पर चिराग ने कहा था कि ' निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। सरकारी क्षेत्र में किसी तरह की नियुक्ति हो, उसमें आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। नहीं तो आरक्षण की व्यवस्था को घात लगेगी।' चिराग के इस बयान के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया था। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव द्वारा जातीय जनगणना का मुद्दा उठाए जाने पर उनका समर्थन चिराग ने किया था। जाहिर प्रतिक्रिया देने में चिराग की जल्दबाजी बीजेपी आलाकमान को अखरा जरूर है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी चिराग ने अकेले चुनाव लड़ने का संकेत दिया था
बीती 25 अगस्त को रांची में लोक जनशक्ति पार्टी (आर) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चिराग ने कहा था कि उनकी पार्टी झारखंड की चालीस सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी कर रही है। अगर गठबंधन में बात बनती है तो ठीक, नहीं तो अकेले चुनाव लड़ने के लिए वे तैयार हैं। इसी के दो दिन बाद दिल्ली में उन्होंने जम्मू के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। यहां भी उन्होंने चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की थी।
बीजेपी ने चिराग फैक्टर को बैलेंस करने की कवायद को अंजाम दिया है
एक के बाद एक मुद्दों को लेकर एनडीए के रुख से इतर राग अलाप रहे चिराग पासवान के रुख को देखते हुए बीजेपी द्वारा बैलेंस बनाने की कवायद भी नजर आई हैं। इस कड़ी की शुरुआत 22 अगस्त को तब हुई जब बीजेपी के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल चिराग के चाचा और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया पशुपति पारस पारस से मिलने उनके पटना स्थित आवास पहुंचे। इसके बाद 27 अगस्त को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पशुपति पारस से मुलाकात की। आधे घंटे हुए बातचीत का ब्यौरा तो सामने नहीं आया लेकिन बैठक के बाद पारस ने बयान दिया कि 'पॉजिटिव बात हुई है। भरोसा दिया गया है कि लोकसभा चुनाव का हाल विधानसभा में नहीं होगा। हम एनडीए के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे।' सियासी विश्लेषकों ने इस मुलाकात को चिराग पासवान पर दबाव बनाने की काउंटर रणनीति के तौर पर आंका।
लोजपा के यूपी में सक्रियता के दावे पर एनडीए के घटक दल तीखी प्रतिक्रिया दे चुके हैं
लोक जनशक्ति पार्टी के जमुई सीट से सांसद अरुण भारती कह चुके हैं कि एनडीए से उनका गठबंधन सिर्फ बिहार चुनाव और लोकसभा चुनाव को लेकर है। अन्य राज्यों में ऐसा कोई समझौता नहीं है। अब उनका संगठन यूपी में भी विस्तार कर रहा है। पार्टी से जुड़े कुछ लोग यूपी में चुनाव लड़ना चाहते हैं। जिसे लेकर तैयारियां की जा रही हैं। इस बयान को लेकर बीजेपी की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन योगी सरकार के मंत्री और एनडीए के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ने कहा लोजपा बिहार में ही अपना संगठन और आंदोलन चलाए हुए है, उनका यूपी में न संगठन है और न जनाधार है। लोजपा जिस दलित कम्युनिटी की बात करती हैं, उसमें बड़े नेता के तौर पर मायावती यहां पहले से ही हैं। इसी कम्युनिटी के बीजेपी और सपा से विधायक व सांसद भी हैं। अब ये जाति यूपी में बीजेपी और सपा को छोड़कर लोजपा की तरफ नहीं जाने वाली।
चिराग के जरिए बीजेपी की निगाहें भी जातीय कील कांटे दुरुस्त करने में हैं
सियासी विश्लेषक मानते हैं कि चिराग पासवान भले ही एनडीए का हिस्सा हों और मंत्री पद पर काबिज हों लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा के दायरा अब बिहार से भी आगे बढ़कर है। अपने रसूख और सियासी कद में इजाफा करने के लिए भी दूसरे राज्यों में हैसियत बढ़ाना जरूरी है। इस मकसद को साधने के लिए यूपी खासा अहम हो जाता है। यहां के उन हिस्सों में चिराग पहले सक्रिय होना चाहते हैं जहां जातिगत समीकरण जड़े जमाने में मदद कर सकें। इसके लिए अवध और मध्य क्षेत्र पर उनका फोकस है। चूंकि यहां बीएसपी-सपा और कांग्रेस सरीखे सियासी दल भी जाति आधारित गोलबंदी की बिसात में मशगूल हैं। ऐसे में चिराग की मंशा का परवान चढ़ना आसान नहीं, पर उनकी सक्रियता बता रही है कि वे पासी वोटरों में पैठ बनाकर अपने सियासी कद में इजाफा करना चाहते हैं। चूंकि हाल फिलहाल पासी वोटरों का बड़ा हिस्सा इंडी गठबंधन की तरफ आकर्षित हुआ है ऐसे में चिराग पासवान के जरिए ये वोटबैंक अगर एनडीए के तरफ खिंचता है तो ये बीजेपी के लिए अच्छी खबर हो सकती है।
कौशांबी सुरक्षित सीट पर दलित वोटरों का रहा है दबदबा
साल 1997 से पूर्व कौशांबी इलाहाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। पहले इस लोकसभा सीट का नाम चायल था तब भी ये सुरक्षित सीट थी। साल 2009 के पुनर्गठन के बाद इसका नाम कौशांबी सीट कर दिया गया। हैं। कौशाम्बी संसदीय क्षेत्र सुरक्षित में कौशाम्बी की चायल, मंझनपुर और सिराथू तथा प्रतापगढ़ जनपद की कुंडा और बाबागंज विधानसभा सीट शामिल है। 2014 से पहले तक यहां के दलित वोटों पर बीएसपी का कब्जा था। पर करीब दो दशक तक यहां के दलित वोटों पर बसपा का एकछत्र कब्जा था। पर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इन वोटरों का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ आ गया। पर साल 2022 में जिले की तीनों सीटों पर 60 फीसदी से ज्यादा पासी समाज के वोटर सपा के पक्ष में लामबंद हो गए। नतीजा ये रहा कि यहां की तीन विधानसभा सीटें सिराथू, मंझनपुर और चायल पर समाजवादी पार्टी को जीत मिल गई। इस बार के लोकसभा चुनाव में दो बार के बीजेपी सांसद विनोद कुमार सोनकर को समाजवादी पार्टी के पुष्पेंद्र सरोज ने एक लाख से अधिक वोटों से शिकस्त दे दी। दलित वोटरों की प्रभावशाली तादाद के चलते ही कई सियासी दल यहां के समीकरणों को साधने की जुगत में रहते हैं। इसी मकसद से चिराग पासवान ने भी यहां दस्तक दी है।