Friday 22nd of November 2024

UP: कई बेगुनाहों के कत्ल का सबब बना महाघोटाला, NRHM घोटाले के सूत्रधार अभी तक शिकंजे से बाहर

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  July 05th 2024 08:39 AM  |  Updated: July 05th 2024 08:39 AM

UP: कई बेगुनाहों के कत्ल का सबब बना महाघोटाला, NRHM घोटाले के सूत्रधार अभी तक शिकंजे से बाहर

Gyanendra Shukla, Editor: UP: लखनऊ में बीएसपी सरकार के शासनकाल में दो-दो सीएमओ की हत्या और एक डिप्टी सीएमओ की जेल में कैद रहने के दौरान हुई संदिग्ध मौत के मामलों का जिन्न फिर से बाहर आ गया है। दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीएमओ हत्याकांड की सीबीआई जांच हुई थी। जांच एजेंसी ने आनंद प्रकाश तिवारी, विनोद शर्मा और साजिशकर्ता आरके वर्मा को गिरफ्तार किया था। सीबीआई कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में विनोद शर्मा और आर के वर्मा को बरी कर दिया और आनंद प्रकाश तिवारी को  दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी गई।

आपको बता दें कि सीएमओ हत्याकांड की जांच के दौरान ही सीबीआई को एनआरएचएम घोटाले का सुराग मिला। पता चला कि धांधली में शामिल होने से इंकार करने पर रसूखदार सफेदपोशों के इशारे पर दो दो सीएमओ मौत के घाट उतार दिए गए। कैसे हुआ था महाघोटाला?  कौन कौन थे सूत्रधार?

एनआरएचएम फंड की लूट के लिए नियमों को रख दिया ताक पर

सीबीआई ने हत्याकांड के बाबत अपनी जांच के दौरान प्रदेशव्यापी छापेमारी शुरू की। इस दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग से जुड़े ठेकेदार शिकंजे में आते गए। जांच में पुख्ता सबूत मिले कि ऐसे कई ठेकेदारों को दवा और मेडिकल उपकरण सप्लाई करने का टेंडर दे दिया गया जिन्होंने ये काम कभी किया ही नहीं था। 3000 करोड़ का ठेका दिया गया पर काम पूरा हुए बिना ठेकेदारों को भुगतान भी करा दिया गया। फोन डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि कुशीनगर में तैनात रहे एक सीएमओ दिनभर में दो दर्जन से अधिक बार पूर्वांचल के एक दबंग ठेकेदार से बातचीत करते थे। इन्होंने सारे ठेके इसी माफिया ठेकेदार के गुर्गों को सौंपे थे।  सीबीआई जांच की जद में सेहत महकमे के अधिकारी ही नहीं बल्कि जल निगम, यूपीएसआईडीसी के अधिकारी भी आने लगे। जांच में खुलासा हुआ कि जिन जगहों से दवाओं की खरीदारी दिखाई गई है उन जगहों पर दवा की कोई कंपनी ही नहीं थी, यहाँ तक कि कुछ जगहों की जांच के दौरान उन स्थानों पर परचून की दुकान पाई गईं।

इस केंद्रीय फंड की जमकर हुई लूट खसोट

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने यूपी सरकार को एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) फंड के तहत 2005-06 के बाद छह वर्षों तक तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए थे। ये फंड जननी सुरक्षा योजना, एंबुलेंस खरीददारी, दवाओं की खरीद में खर्च किया जाना था। इस फंड को प्रदेश के सभी 75 जिले के सीएमओ और अन्य नोडल अधिकारियों के जरिये खर्च किया गया।

कैग रिपोर्ट में एनआरएचएम महाघोटाले की परतें खुली

कैग (भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक) की जांच रिपोर्ट में भी महाघोटले की परतें खुलीं। इस रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2005 से लेकर मार्च 2011 तक यूपी को एनआरएचएम के तहत 8657.35 करोड़ रुपये दिए गए। इस फंड में से करीब पांच हजार करोड़ रुपए नियमों को धताबताकर खर्च कर दिए गए। 1100  करोड़ रुपये का भुगतान तो बिना किसी दस्तखत के ही कर दिया गया। कई सौ करोड़ रुपये चहेते ठेकेदारों को बिना किसी एग्रीमेंट भुगतान कर दिया गया। दो दर्जन जिलों में कैग रिपोर्ट के आधार पर भारी अनियमितता की बात सामने आई। रिपोर्ट के अनुसार सरकारी दवा खरीदी दस गुना से बीस गुना अधिक रेट पर किया गया। जननी सुरक्षा के नाम पर मिलने वाली धनराशि का बंदरबांट किया गया। उपकरणों की खरीद में कई सौ गुना का खेल हुआ। हजारों करोड़ का खर्च दिखा दिया गया लेकिन उसका लेखाजोखा किसी भी जिले में मौजूद नहीं मिला। अस्पताल निर्माण के नाम पर कई हजार करोड़ डकार लिए गए।

कैग रिपोर्ट में ये खामियां उजागर हुईं

-- स्कूटर को टैक्सी दिखाकर पैसा वसूल लिया गया।

-- जांच में 60 फीसदी से ज्यादा के बिल फर्जी पाए गए।

- बिना हस्ताक्षर के पैसे लिए, बिना करार के ठेके दिए

- टीकाकरण अभियान में टीके लगे नहीं, भुगतान हो गया।

- अस्पताल की बिल्डिंग बनी नहीं, ठेकेदार को पैसे दे दिए।

- बिना बच्चे पैदा हुए डिलीवरी का इंसेंटिव दे दिया गया।

- डॉक्टर रखने के लिए राशि मंजूर हुई, लेकिन रखा नर्सों को।

हजारों करोड़ रुपयों का हिसाब किताब ही नहीं मिल सका

तीन सौ पेज की कैग की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2005 से मार्च 2011 तक एनआरएचएम योजना के तहत ग्रामीण जनता के स्वास्थ्य के सुधार के लिए 8657.35 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे। जिनमें से 4938 करोड़ रुपये नियमों की अनदेखी कर खर्च कर दिए गए। इनमें से 1085 करोड़ रुपये का भुगतान तो बिना किसी के हस्ताक्षर ही कर दिए गए। बिना किसी करार के ही 1170 करोड़ रुपये का ठेका चहेतों को बांट दिया गया। निर्माण एवं खरीद संबंधी धनराशि को खर्च करने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट एवं सीवीसी के निर्देशों की धज्जियां उड़ा दी गईं। केंद्र से मिले 358 करोड़ और कोषागार के 1768 रुपयों करोड़ का हिसाब राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी की फाइलों में कोई ब्यौरा कैग को मिला ही नहीं।

महंगी दरों पर दवा खरीद हुई, चहेतों को रकम रेवड़ी के मानिंद दी गई

कैग रिपोर्ट के अनुसार महज 1.40 रुपए वाले दस टेबलेट के पत्तो को अलग अलग जिलों में 18 रुपए तक खरीदा गया। वित्तीय वर्ष 2008-09 में अकेले दवा खरीद में 1.66 करोड़ रुपये के घोटाला पाया गया। जांच में ये भी पता चला कि एनआरएचएम के कार्यक्रम मूल्यांकन महानिदेशक की ओर से 2005 से 2007 के बीच 1277.06 करोड़ रुपये एनआरएचएम के लेखा-जोखा से मेल ही नहीं खाते हैं। गैर पंजीकृत सोसाइटी को 1546 करोड़ रुपये दे दिए गए। 2009-10 में नियम विरुद्ध जाकर बिना उपयोगिता प्रमाण पत्र के उपकेंद्रों को 52 करोड़ रुपये मुहैया कराए गए। कैग के मुताबिक  सीएजी ने लिखा है कि चार जिलों के परीक्षण में ही पाया है कि 4.90 करोड़ रुपये व्यर्थ खर्च किए गए। शाहजहांपुर के स्वास्थ्य केंद्र जलालाबाद में कागजों पर जिस नंबर की गाड़ी को किराए पर दो बार लिया गया दिखाया वो गाड़ी शाहजहांपुर के डीएम की सरकारी कार थी।

स्टाफ नियुक्ति और जननी सुरक्षा योजना के नाम पर रकम डकार ली गई

एनआरएचएम के तहत डॉक्टर, नर्स व एएनएम की नियुक्ति की जानी थी। धनराशि भी जारी कर दी गई। पर जांच में पता चला कि 8327 की जगह केवल 4606 स्टाफ नर्स ही नियुक्त की गईं। तत्कालीन सरकार ने  तीन फीसदी लक्ष्य के सापेक्ष घरेलू उत्पाद का महज  डेढ़ फीसदी ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया। शिशु एवं प्रसव मृत्यु दर कम करने की योजना में भी सेंधमारी की गई। सुरक्षित मातृत्व योजना के प्रावधान के तहत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिलाओं के प्रसव के एवज में निजी नर्सिंग होम को प्रति डिलीवरी 1850 रुपये दिए जाने थे। पर कई जिलों में लाभार्थी महिला से बीपीएल दस्तावेज लिए ही नहीं गए और नर्सिंग होम्स के साथ मिलकर रकम की बंदरबांट कर ली गई। जननी सुरक्षा योजना के तहत वर्ष 2005-11 के बीच 69 लाख महिलाओं के लिए कागजों पर 1219 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस योजना के लाभार्थियों से जुड़े दस फीसदी मामलों की जांच राज्य सरकार को करनी थी।  लेकिन 2008 से 2011 के बीच इस योजना के तहत खर्च हुए 1085 करोड़ रुपये की जांच की ही नहीं गई। वहीं, 2005-11 के बीच 26 लाख लोगों का नसबंदी के एवज में 181 करोड़ रुपये खर्च हुए। कई जिलों में ऐसे लाभार्थियों के न तो अंगूठे का निशान लिए गए न ही दस्तखत लिए गए। जाहिर है मनमाफिक तरीके से रकम बांटी गई।

शुरुआती दौर में रसूखदारों पर कसा कानूनी शिकंजा ढीला होता गया

एनआरएचएम घोटाला उजागर होने के बाद चहुंओर हड़कंप मच गया। विपक्षी दलों ने जमकर हाय तौबा मचाया। चहुँ तरफा दबाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा अंटू को पद से हटा दिया था। सीबीआई ने इन मंत्रियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी, जांच के दौरान आईएएस अफसरों, दर्जनों सीएमओ, फार्मासिस्टों की भूमिका संदिग्ध मिली तो उनके नाम भी मुकदमे में शामिल किए गए। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य रहे वरिष्ठ आईएएस अफसर प्रदीप शुक्ला भी जेल भेजे गए। जांच बढ़ती रही बढ़ा घोटाला उजागर होता रहा। जांच की आंच कई रसूखदारों तक पहुंचने लगी, पर वक्त बीतने के साथ जांच की रफ्तार धीमी होती गई, कार्रवाई के नाम पर कुछ छोटी मछलियों पर तो कानून का शिकंजा कसा पर रसूखदार मगरमच्छ रूपी बड़े घोटालेबाज बच निकले। अब तो वक्त बीतने के साथ ही लोगों के जेहन से इस महाघोटाले की यादें मिटने लगीं और इससे संबंधित तमाम जांच रिपोर्ट फाइलों में कैद होकर दम तोड़ने लगी हैं। 

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