ब्यूरो: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे संभल संसदीय सीट की। संभल मुरादाबाद मंडल का एक महत्वपूर्ण जिला है। ये देश के प्राचीनतम शहरों में शुमार है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसारसतयुग में इस क्षेत्र का नाम सत्यव्रत हुआ करता था, फिर त्रेता युग में महदगिरि और द्वापर युग में पिंगल के नाम से जाना गया। कलयुग में इसका संभल नाम पड़ा।ये जिला बुलंदशहर, मुरादाबाद, अमरोहा, बदायूं, और रामपुर जिले से अपनी सीमाएं साझा करता है।
समृद्ध इतिहास संभाले हुए है संभल
यह क्षेत्र प्राचीनकाल और मध्यकाल में कई शासकों और सम्राटों के आधीन रहा। शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, संभल पांचाल शासकों के आधिपत्य में था। बाद में राजा अशोक के साम्राज्य का हिस्सा बना। 12 वीं शताब्दी के दौरान, दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान की राजधानी बना। सल्तनत काल में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने संभल पर कब्जा जमा लिया। बाद में, दिल्ली के एक अन्य सुल्तान, फिरोज शाह तुगलक ने संभल शहर पर छापा मारा और कब्जा कर लिया। 15 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लोदी साम्राज्य के दूसरे शासक सिकंदर लोदी ने संभल को अपने विशाल साम्राज्य की प्रांतीय राजधानियों में से एक घोषित किया और यह चार साल तक इस पर शासन किया। पहले मुगल शासक बाबर ने संभल में पहली बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। हुमायूँ को संभल का गवर्नर बनाया गया। अकबर के शासन में ये क्षेत्र खासा फला-फूला। बाद में अकबर के बेटे शाहजहां को शहर का प्रभारी बनाया गया।
कल्कि मंदिर की ही अत्यधिक मान्यता
यहां का कल्कि मंदिर हजार वर्ष पुराना है। पौराणिक मान्यता है कि इसका निर्माण महाराज मनु ने किया था। दक्षिण भारतीय शैली पर बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार 300 वर्ष पूर्व इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने कराया था। होलकर राज्य के राज चिन्ह मंदिर के प्रवेश द्वार पर आज भी मौजूद है। पुराणों में उल्लेख है कि कलयुग में भगवान विष्णु दसवां अवतार कल्कि भगवान के रूप में यहां जन्म लेंगे।
जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
यहां का मनोकामना मंदिर कई सौ वर्ष पुराना है। इसे संभल के नवाबों के सहयोग से निर्मित किया गया। यहां 400 साल पहले संभल के तत्कालीन नवाब द्वारा बनवाया गया किला है। जिसके निर्माण में मुगल और ईरानी दोनों वास्तुकला शैली की छाप है। यहां की जामा मस्जिद, जिसे बाबरी मस्जिद भी कहा जाता है, सबसे पुराने स्मारकों में से एक है। तुर्को वाली मस्जिद, घंटाघर, कैला देवी मंदिर और तोता मैना की कब्र यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहते हैं।
मायावती के शासन के दौरान संभल जिला बना
यूपी में बीएसपी शासन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 28 सितंबर 2011 को तीन नए जिलों की घोषणा की थी उनमें संभल भी शामिल था। तब इसे “भीमनगर” नाम दिया गया था। जो बाद में अखिलेश यादव सरकार के सत्ता में आने के बाद बदलकर फिर से संभल कर दिया गया। इस जिले का हेड क्वार्टर बहजोई शहर है। ये जिला बुलंदशहर, मुरादाबाद, अमरोहा, बदायूं, और रामपुर जिले से अपनी सीमाएं साझा करता है
1977 में अस्तित्व में आई संभल लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए बनी चुनौती
इमरजेंसी हटाए जाने के बाद देश में पहली बार चुनाव हुए, तब यहां से चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी से शांति देवी सांसद चुनी गईं। 1980 और 1984 में लगातार कांग्रेस यहां से चुनाव जीती पर उसके बाद से कांग्रेस के लिए ये सीट बेगानी हो गई। तब से आज तक कांग्रेस का यहां खाता ही नहीं खुल सका। 1989 और 1991 में जनता दल के श्रीपाल सिंह यादव यहां से सांसद बने। 1996 में बाहुबली डीपी यादव ने बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत गए।
समाजवादी पार्टी का गढ़ बन गई संभल संसदीय सीट
साल 1998 और 1999 में यहां से सपा संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव दो बार लगातार चुनाव जीतकर संसद तक पहुंचे। 2004 में मुलायम ने ये सीट छोड़ी तो यहां से उनके भाई प्रो. रामगोपाल यादव चुनाव लड़े और रेकार्ड वोटों से जीते। 2009 के चुनाव में शफीकुर रहमान बर्क यहां से बीएसपी के टिकट से चुनाव जीतकर सांसद बने।
मोदी लहर में संभल में बीजेपी का खुला खाता
2014 के चुनाव में मोदी लहर का फायदा बीजेपी को संभल में भी मिला, तब बीजेपी के सत्यपाल सिंह सैनी सांसद चुने गए थे। उस लोकसभा चुनाव में संभल में 62.4 फीसदी मतदान हुआ था। मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी के सत्यपाल सैनी ने सपा प्रत्याशी शफीक उर रहमान बर्क को 5174 वोटों के फर्क से हरा दिया था।
पिछले आम चुनाव में ये सीट सपा ने बीजेपी से छीन ली थी
2019 के चुनाव में 12 उम्मीदवारों के बीच टक्कर हुई। तब सपा-बीएसपी गठबंधन की तरफ से सपा के डा. शफीकुर्रहमान बर्क ने 658,006 वोट पाकर बीजेपी के परमेश्वर लाल सैनी को 174,826 (14.8%) वोटों के मार्जिन से हराकर चुनाव जीत लिया था। तब कांग्रेस के मेजर जगत को महज 12,105 वोट मिले और वो तीसरे पायदान पर रहे थे।
जातीय समीकरणों का ताना बाना
तकरीबन 18 लाख वोटरों वाली संभल लोकसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है। यहां मुस्लिम वोटरों की आबादी पचास फीसदी से अधिक है। इस सीट पर अनुसूचित जाति के करीब 2.75 लाख, यादव बिरादरी के 1.5 लाख वोटर हैं जबकि 5.25 लाख अन्य पिछड़ा वर्ग व सामान्य बिरादरी के वोटर हैं।
यहां की अधिकांश विधानसभा सीटों पर सपा काबिज है
संभल संसदीय सीट के अंतर्गत पांच विधानसभाएं आती हैं, जिनमे से कुंदरकी और बिलारी मुरादाबाद का हिस्सा हैं जबकि संभल की चंदौसी, असमौली और संभल विधानसभा सीट शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से चार पर सपा और महज एक पर बीजेपी जीती थी। चंदौसी सीट से विधायक गुलाब देवी योगी सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री हैं। यहां की कुंदरकी सीट से सपा के जियाउर्रहमान, बिलारी से मोहम्मद फहीम इरफान, असमोली सीट से सपा की पिंकी यादव और संभल विधानसभा सीट से इकबाल महमूद विधायक हैं।
2024 की चुनावी चौसर सज चुकी है
बीजेपी के ओर से फिर से परमेश्वर लाल सैनी पर ही दांव आजमाया जो 2019 में चुनाव लड़े थे। सपा-कांग्रेस गठबंधन के तहत कुंदरकी के मौजूदा विधायक जियाउर्रहमान बर्क को चुनाव मैदान में उतारा गया है। बीएसपी ने पूर्व विधायक सोलत अली को टिकट दिया है। परमेश्वर लाल सैनी पूर्व में बीएसपी एमएलसी रह चुके हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट से लड़े पर दूसरे पायदान पर रहे थे। जियाउर्रहमान पूर्व में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से चुनाव लड़े थे पर हार गए थे। वर्तमान में कुंदरकी से सपा विधायक हैं। इनके दादा शफीकुर्रहमान पहले सपा प्रत्याशी बनाए गए थे पर उनके निधन के बाद जियाउर्रहमान के नाम का ऐलान किया गया था। बीएसपी के सौलत अली 1996 में सपा के विधायक थे। छह बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2012 के बाद कोई चुनाव नहीं लड़ा।2017 में भी नामांकन किया था पर पर्चा खारिज हो गया था। बहरहाल, अब यहां का मुकाबला इन तीन उम्मीदवारों के दरमियान सिमटा नजर आ रहा है।