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महिला शक्ति: अंग्रेजी हुकूमत को ललकारने वाली भारत की 8 महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानें

Reported by: PTC News Haryana Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  August 09th 2024 10:28 AM  |  Updated: August 09th 2024 10:28 AM

महिला शक्ति: अंग्रेजी हुकूमत को ललकारने वाली भारत की 8 महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानें

ब्यूरो: भारत की ब्रिटिश शासन के काले काल से आजादी के लिए अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना उल्लेखनीय योगदान दिया। इन स्वतंत्रता सेनानियों में कई महिलाएं थीं, जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ी। महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, बल्कि समाज द्वारा उन्हें सौंपी गई पारंपरिक भूमिकाओं को चुनौती देते हुए आगे बढ़कर इसका नेतृत्व भी किया।

कस्तूरबा गांधी

कस्तूरबा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का अछूता नाम हैं। वह राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की पत्नी हैं। भारत की आजादी में गांधीजी का योगदान उल्लेखनीय है, लेकिन उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने भी अग्रणी महिला स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एक राजनीतिक कार्यकर्ता थीं और नागरिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाती थीं। अपने पति की तरह उन्होंने सभी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर समान रूप से काम किया।

रानी लक्ष्मीबाई 

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी ये वाक्य ही बताने के लिए काफी है कि रानी लक्ष्मीबाई की आजादी की लड़ाई में क्या भूमिका थी। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास की सबसे प्रतिष्ठित शख्सियतों में से एक हैं। अपनी बहादुरी के लिए जानी जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के भारतीय विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कम उम्र में विधवा होने के बाद, उन्होंने अपने बेटे को अपनी पीठ पर बांधकर बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं।

सरोजिनी नायडू

सरोजिनी को भारत की कोकिला के नाम से जाना जाता है। वह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने वाली सबसे प्रभावशाली और प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। सरोजिनी नायडू ने खुद को एक कवि, आकर्षक वक्ता और दृढ़ स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा कर ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ जन भावना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई शहरों की यात्रा की और महिला सशक्तिकरण, सामाजिक कल्याण और स्वतंत्रता के महत्व के बारे में लोगों को बताया। सरोजिनी नायडू किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली दूसरी महिला थीं।

बेगम हजरत महल

बेगम हजरत महल भारत की सबसे प्रतिष्ठित महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के समकक्ष के रूप में भी जाना जाता था। 1857 में, जब विद्रोह शुरू हुआ, वह पहले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं जिन्होंने ग्रामीण लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने और अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उस दौरान बेगम ने अपने बेटे को अवध का राजा घोषित कर दिया और लखनऊ पर अधिकार कर लिया। यह लड़ाई आसान नही थी, ब्रिटिश हुकूमत ने राजा से लखनऊ का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और उन्हें नेपाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सुचेता कृपलानी

 ने किया, जो भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश का नेतृत्व किया था।  पंजाब की सुचेता कृपलानी संवैधानिक इतिहास की प्रोफेसर थीं। उन्होंने 1940 में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की भी स्थापना की। उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया क्योंकि उन्होंने अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया था। स्वतंत्रता के लिए उनकी दृढ़ता और समर्पण ने उन्हें संघर्ष में एक महत्वपूर्ण महिला नेता के रूप में स्थापित किया। 

सावित्रीबाई फुले

भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने पहले भारतीय बालिका विद्यालय की स्थापना की थीं। उनका कहना था कि अगर आप एक लड़के को शिक्षित करते हैं, तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन यदि आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं। उनके कठिन समय में उनके पति ज्योतिराव फुले ने उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने समाज की तमाम रूढ़ियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समाज में महिला सशक्तिकरण के प्रति लोगों को जागरूक किया। सावित्रीबाई फुले समाज की लड़कियों को शिक्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित थीं।

उषा मेहता 

22 साल की कानून की पढ़ाई करने वाली उषा मेहता ने गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित होकर पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गई थी। कई चुनौतियों का सामना करते हुए उषा मेहता ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कांग्रेस रेडियो की स्थापना की। ब्रिटिश सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद भी 3 सितंबर, 1942 को कांग्रेस रेडियो का उद्घाटन किया। सरकार की सेंसरशिप को दरकिनार करते हुए, उषा ने आंदोलन से जुड़ी जानकारी को रेडियो के माध्यम से प्रसारित किया। कांग्रेस रेडियो के गुप्त संचालन ने कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने उषा मेहता और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया।

भीकाजी कामा

भीकाजी कामा आजादी के आंदोलन में अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं। उन्हें मैडम कामा के नाम से भी जाना जाता था। भीकाजी कामा ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय नागरिकों के मन में महिला समानता और महिला सशक्तिकरण के बीज बोये। वह एक पारसी परिवार से थीं। उन्होंने अनाथ लड़कियों को समृद्ध जीवन जीने में भी मदद की।

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