ब्यूरोः CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी (Sitaram Yechury Death) का गुरुवार, 12 सितंबर को एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। 72 साल के येचुरी लंबे समय से बीमार थे, उनकी हालत कुछ दिनों से गंभीर बनी हुई थी। पिछले हफ्ते ही उन्हें वेंटीलेटर पर शिफ्ट किया गया था। लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। सीताराम येचुरी के निधन के बाद उनके परिवार ने उनके पार्थिव शरीर को एम्स अस्पताल में दान करने का फैसला लिया है। इस संबंध में एम्स ने एक प्रेस रिलीज जारी कर अपने बयान में कहा कि येचुरी के परिवार ने शिक्षण और शोध उद्देश्यों के लिए उनका पार्थिव शरीर अस्पताल को दान कर दिया है।
दान करने के बाद पार्थिव शरीर का क्या होता है?
जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो कई लोग मृतक शरीर को हॉस्पिटल को डोनेट करने का फैसला लेते हैं। शरीर डोनेट के करने के बाद मेडिकल के छात्र पढ़ने और रिसर्च के लिए बॉडी का इस्तेमाल करते है। डोनेट किये हुए शरीर को सबसे पहले फॉर्मेलिन के जरिए एक वैज्ञानिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है, जिससे शरीर से बैक्टीरिया या कीटाणु को खत्म किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद शव खराब नहीं होता है। शव एक लकड़ी की तरह हो जाता है। फिर शव मेडिकल के छात्र के स्टडी काम आते हैं। जो छात्रा मेडिकल की पढ़ाई करते हैं, अपनी पढ़ाई के दौरान छात्र डेड बॉडी के अलग-अलग हिस्से की स्टडी करते हैं।
पार्थिव शरीर दान करने के बाद क्या शव वापिस मिलता है?
मेडिकल के छात्र पढ़ाई के दौरान शरीर हवा के संपर्क में आती है, जिससे बॉडी खराब होने लगती है। इसलिए बॉडी को नष्ट करना जरुरी हो जाता है। वो समय आने पर परिवार को बॉडी सौंप दी जाती है, जिससे अंतिम संस्कार किया जा सके।
बॉडी डोनेशन के नियम
डोनेशन दो तरह के होते हैं, पहला ऑर्गन डोनेशन यानी अंग दान और दूसरा बॉडी डोनेशन या देह दान। सीताराम येचुरी के परिवार ने बॉडी डोनेशन किया। ऑर्गन डोनेशन आमतौर पर किसी परिवारजन की मदद करने के लिए परिवार के ही लोग देते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि दो परिवार आपस में जरूरत के आधार पर अंगों का आदान-प्रदान कर लेते हैं।
भारत में अंगदान मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 द्वारा नियंत्रित होता है। यह कानून मृत और जीवित दोनों को अपने अंग दान करने की अनुमति देता है। इसके अलावा, मृत्यु का एक रूप "मस्तिष्क मृत्यु" माना जाता है (एक ऐसी स्थिति जिसमें मस्तिष्क पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है और जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक अनैच्छिक गतिविधियां बंद हो जाती हैं)। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) देश में अंग खरीद, वितरण से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने और निगरानी करने के लिए सबसे बड़ी संस्था है।
अंग दान के तरीके
अंग दान के दो तरीके हैं- पहला, व्यक्ति मृत्यु से पहले एक वादा करता है और मृत्यु के बाद, परिवार की सहमति से दान प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। ऐसी स्थिति में, दो गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित अंग दान फॉर्म भरकर ऐसा किया जा सकता है। गवाह कोई करीबी रिश्तेदार होना चाहिए। यह फॉर्म आपके स्थानीय मेडिकल कॉलेज, अस्पताल या एनजीओ से प्राप्त किया जा सकता है। यदि किसी ने स्वयं संकल्प नहीं लिया है तो परिवार के सदस्य भी अंगदान कर सकते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट अंग का दान करता है, तो मृत्यु के बाद एक निश्चित समय पर उस अंग को हटा दिया जाता है। प्रत्येक अंग का अपना समय होता है और उसी अवधि के भीतर अंग को निकालना आवश्यक होता है। फिर मृतक का शव सम्मानपूर्वक परिवार को लौटा दिया जाता है। मृत्यु के तुरंत बाद अस्पताल को सूचित किया जाना चाहिए और अंग दान की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जाएगी।
भारत में अंगदान की वर्तमान स्थिति क्या है?
इस साल जुलाई में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अस्पतालों के बाहर होने वाली मौतों के मामले में जनता को शव दान करने के लिए कहा था। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के अनुसार, 2023 में 1,028 लोगों ने अपना शरीर दान किया, साल 2022 में यह संख्या बढ़कर 941 थी। मेडिकल रिसर्च के लिए अपना शरीर दान करने वाले प्रमुख भारतीयों में कानूनी विद्वान लीला सेठ, सीपीआई नेता सोमनाथ चटर्जी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और यान सांग और नानाजी देशमुख शामिल हैं। अब इस क्रम में सीताराम येचुरी का नाम भी जुड़ गया है। इसके अलावा आमिर, अमिताभ और रितिक जैसे कई फिल्मी सितारों ने भी अपनी मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने का संकल्प लिया है। लेकिन अभी भी अंगदान करने में खराब प्रदर्शन के पीछे कुछ कारणों में सार्वजनिक जागरूकता की कमी और धार्मिक मान्यताएं शामिल हैं।